ना सावन का मोर हूँ
ना मूषिक की जात
ना जग-जाहिर मैंने की
ना धरा गढ़ाई बात
कारण बात का बीज है
सींचे वो निर्दोष
बीज विषैला तेज कटु
मैं बस रहा था पोस
जड़ मिटटी की बैरी थी
डाल हवा को खाय
मैं तो बस पानी दिया
अपराधी मैं नाय
ना मूषिक की जात
ना जग-जाहिर मैंने की
ना धरा गढ़ाई बात
कारण बात का बीज है
सींचे वो निर्दोष
बीज विषैला तेज कटु
मैं बस रहा था पोस
जड़ मिटटी की बैरी थी
डाल हवा को खाय
मैं तो बस पानी दिया
अपराधी मैं नाय
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